महाकुंभ : कल्पवासियों के संकल्प के आगे सर्दी भी बेअसर

महाकुंभनगर । बिहार के मैथिली क्षेत्र की 68 वर्षीय रोहिणी झा कड़ाके की ठंड में भी संगम के तट पर अपने शिविर में जमीन पर सोती हैं, गंगा में डुबकी लगाने के लिए सुबह जल्द उठती हैं और दिन में सिर्फ एक बार भोजन करती हैं।
रोहिणी महाकुम्भ में कल्पवास कर रही हैं। कल्पवास का मतलब होता है पूरे एक महीने तक संगम के किनारे रहकर वेद अध्ययन, ध्यान और पूजन करना।
पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक होने वाला कल्पवास सदियों से इस क्षेत्र की आध्यात्मिक विरासत का हिस्सा रहा है। महाभारत और रामचरितमानस सहित विभिन्न वैदिक ग्रंथों में इस धार्मिक क्रिया का जिक्र किया गया जो हिंदू आध्यात्मिकता में इसके गहरे महत्व को दर्शाता है।
झा, महाकुम्भ में कल्पवास करने वाले 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं में से एक हैं।
अपने 11वें कल्पवास पर झा ने बताया कि उन्होंने पहला कल्पवास तब किया जब वह चार साल की थीं और उस समय उन्होंने अपने माता-पिता के साथ कल्पवास किया था।
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